Psalm 14
1 मूर्ख ने अपने मन में कहा है, कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्होंने घिनौने काम किए हैं, कोई सुकर्मी नहीं।
2 परमेश्वर ने स्वर्ग में से मनुष्यों पर दृष्टि की है, कि देखे कि कोई बुद्धिमान, कोई परमेश्वर का खोजी है या नहीं।
3 वे सब के सब भटक गए, वे सब भ्रष्ट हो गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं।
4 क्या किसी अनर्थकारी को कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, जो मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, और परमेश्वर का नाम नहीं लेते?
5 वहां उन पर भय छा गया, क्योंकि परमेश्वर धर्मी लोगों के बीच में निरन्तर रहता है।
6 तुम तो दीन की युक्ति की हंसी उड़ाते हो इसलिये कि यहोवा उसका शरणस्थान है।
7 भला हो कि इस्राएल का उद्धार सिय्योन से प्रगट होता! जब यहोवा अपनी प्रजा को दासत्व से लौटा ले आएगा, तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा॥
1 To the chief Musician, A Psalm of David.
2 The fool hath said in his heart, There is no God. They are corrupt, they have done abominable works, there is none that doeth good.
3 The Lord looked down from heaven upon the children of men, to see if there were any that did understand, and seek God.
4 They are all gone aside, they are all together become filthy: there is none that doeth good, no, not one.
5 Have all the workers of iniquity no knowledge? who eat up my people as they eat bread, and call not upon the Lord.
6 There were they in great fear: for God is in the generation of the righteous.
7 Ye have shamed the counsel of the poor, because the Lord is his refuge.
8 Oh that the salvation of Israel were come out of Zion! when the Lord bringeth back the captivity of his people, Jacob shall rejoice, and Israel shall be glad.